WELECOME

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संचार व्यवस्था(Communication System),मॉडुलन के प्रकार,तरंग के विभिन्न प्रकार,पृथ्वी का वायुमण्डल

                                                            पाठ  30
                                                    संचार व्यवस्था
वह व्यवस्था जिसके व्दारा सन्देशो अथवा सूचनाओं को एक स्थान से किसी विधि व्दारा सम्प्रेषित किया जाता है तथा दूसरे स्थान पर इनको ग्रहण किया जाता है, संचार व्यवस्था कहते हैं।
संचार व्यवस्था के अवयव ः-
किसी भी संचार व्यवस्था के मूलतः तीन अवयव होते हैं-
1. प्रेषित्र(Transmitter) ः- 
मूल सन्देश सिग्नल को यदि सीधे संचार चैनल व्दारा प्रेषित करें तो यह बहुत दूर तक संचरित नहीं हो सकता।
प्रेषित्र का कार्य मूल संदेश सिग्नल को एक विशेष प्रक्रिया (मॉडुलन) व्दारा उपयुक्त रूप में परिवर्तित करके संचार चैनल व्दारा प्रेषण के योग्य बनाना है।
2. संचार चैनल अथवा माध्यम (Transmission Channel) ः-
संचार चैनल एक ऐसा भौतिक माध्यम है जिससे होकर संदेश सिग्नल प्रेषित्र से अभिग्राही तक पहुँचता है। यह तारों का एक युग्म अथवा केवल , तार अथवा मुक्त आकाश हो सकता है।
3. अभिग्राही (Reciver) ः-
अभिग्राही का कार्य सिग्नल को ग्रहण करके एक विशेष प्रक्रिया (मॉडुलन) व्दारा अभिग्रहण किये गये सिग्नल से वान्धित संदेश सिग्नल को अलग करना है।
इलेक्ट्रानिक संचार व्यवस्था में प्रयोग होने वाली मूल शब्दावली ः-
संदेश(Message) ः-  सूचना का वह स्वरूप जो सूचना स्रोत्र व्दारा संप्रेषित होता है , संदेश कहलाता है।  आधुनिक संचार व्यवस्थान में संदेश मुख्यतः चार प्रकार के होते है- आवाज , संगीत ,चित्र तथा कम्प्यूटर आंकजडे ।
सिग्नल (Signal ) ः-   प्रेषण के जिये उपयुक्त वैघुत रूप में रूपान्तारल संदेश को सिग्नल अथवा संकेत कहते हैं।
इलेक्ट्रानिक संचार में सिग्नल समय के फलन के रूप में प्रदर्शित वोल्टता अथवा धारा होती है।  
सिग्नल दो प्रकार के होते है- 
 एनालांंग सिग्नल ः-  वह वोल्टता अथवा धारा जिसका मान समय के साथ सतत रूप में बदलता है, एनालाग अथवा अनुरूप सिग्नल कहलाता है।
डिजिटल सिग्नलः-  वह सिग्नल जिसमें वोल्टता अथवा धारा के केवल दो स्तर होते है उन्हे डिजिटल अथवा अंकीय सिग्नल कहते है।
ट्रासड्यूसर(Transducer ) ः-   ट्रासड्यूसर वह युक्ति है जो उर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है।
शोर (Noise) ः- संचार निकाय में अवाँछित सिग्नल जो सूचना सिग्नल के सम्प्रेषण तथा अभिग्रहण में व्यवधान उत्पन्न करने का प्रयास करते है, शोर कहलाता है।
क्षीणता (Atteruation ) - माध्यम में संचरण के दौरान सिग्नल को प्रबलता के ह्रास होने को क्षीणता कहते हैं ।
प्रवर्धन (Amplification ) - किसी इलेक्ट्रानिक परिपथ व्दारा सिग्नल की प्रबलता बढाने की प्रक्रिया को प्रवर्धन कहते हैं।
परास (Range)  - प्रेषी तथा अभिग्राही के सिरों के बीच की वह अधिकतम्र दूरी जहॉ तक सिग्नल को पर्याप्त प्रबलता के साथ ग्रहण किया जा सकता है, परास कहलाता है।
बैण्ड चौडाई (Band Width ) - सिग्नल में उपस्थित तरंगो की आवृत्ति परास को ही बैण्ड चौडाई कहते हैं।
पुनरावर्तक (Repeater) - एक पुनरावर्तक एक ग्राही तथा एक प्रेषी का संयोग है ।  पुनरावर्तक प्रेषी से सिग्नल से सिग्नल प्राप्त करके प्रवर्धित करता है तथा ग्राही को पुनः प्रेषित कर देता है। पुनरावर्तक संचार निकाय की परास को बढाने में प्रयुक्त होते हैं। 
माडुलन (Modulation )- निम्न आवृत्ति की विघुत चुम्बकीय तरंगो को बहुत अधिक दूरी तक प्रेषित नत्रें किया जा सकता । इसके लिेये प्रेषित्र पर निम्न आवृत्ति की विघुत चुम्बकीय तरंगो को उच्च आवृत्ति की वाहक तरंगो पर अध्यारोपित किया जाता है। इस प्रक्रिया को माँडुलन आथव माडुलेशन कहते है।
विमाडुलन (Demodualion) ः- वह प्रक्रिया जिसमे ग्राही से प्राप्त माँडुलित तरंगो मे से मूल विघुत चुम्बकीय तरंग को अलग कर देते है , विमाँडुलन अथ1वा विमाँडुलेशन कहलाती है ।
विरूपण(Distartion) ः- किसी सिग्नल की आकृत्ति में  उत्पन्न हुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुए परिवर्तन को विरूपण कहते है। 
सिग्नलो की बैण्ड चौडाई(Band Width of Signal) ः-  किसी सिग्नल की आवृत्ति परास को उस सिग्नल का आवृत्ति कहते है। बैण्ड मे सम्मिलित उच्चतम्र   ( ∱2)    तथा न्यूनतम्र (∱1) आवृत्तियों के अन्तर को बैण्ड कहते हैा
                                          बैण्ड चौडाई    ∱2 - ∱1
            विभिन्न सिग्नलो के आवृत्ति परास तथा बैण्ड चौडाई निम्न हैं -

    सिग्नल

     आवृत्ति परास  

बैण्ड चौडाई

1.  भाषण

 300Hz  से  3100Hz                                             

2800 Hz

2.     संगीत

   20Hz   से  20000Hz                                     

              19980Hz

3.  दृश्य

   1500MHz   से   1506MHz 

  6 MHz

4.कम्प्यूटर                     

   2000MHz   से    2600MHz     

              600MHz

 संचार चैनल अथवा माध्यम की बैण्ड चौडाई ः-  विभिन्न प्रकार के प्रेषण माध्यमों के लिये भिन्न -2 बैण्ड चौडाई की आवश्यकता होती है। 
संचार चैनल दो प्रकार के होते है।
1. तारेे (Wires)- अधिकांश प्रयुक्त तारों वाला माध्यम समास केवल है। समान केबल (              ) है। समान केबल की बैण्ड चौडाई लगभग 750 MHz  है। ऐसे केवल प्रायः 18  से नीचे कार्य करते है।
2. मुक्त आकाश अथवा वायुमण्डल (Free space/Atmosphere)ः - यह संचरण माध्यम रेडियो तरंगो को संचरित करता है। इन रेडियो तरंगो की परास बहुत अधिक कुछ सौ KHz से कुछ  तक होती है। विभिन्न कार्याे के लिये आवंटित की गई आवृत्तियों को परास निम्न हैं - 

 

मानक सेवा

           आबंटित आवृत्ति बैण्ड

1.

मानक AM   प्रसारण

   540 से 1600 KHz

2.

  FM प्रसारण

88 से 108 MHz

3.

टेलीविजन

54 से 72 MHz

76 से 88  MHz                      VHF    TV

174 से 216 MHz

420 से 890 MHz                  UHF   TV

4.

सेल्यूलर मोबाइल

896 से 901 मोबाइल से आधार स्टेसन

840 से 935 आधार स्टेसन से मोबाइल

5.

उपग्रह संचार

5.925 से 6.425                 ( up link)

3.7 से 4.2                            (down link)

  
पृथ्वी का वायुमण्डल (Earth's Atmosphere) ः- पृथ्वी को घेरने वाली वायु के आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। विभिन्न प्रकार के विघुत चुम्बकीय विकिरणों के लिए वायुमण्डल भिन्न -2 गुण दर्शाया है। पृथ्वी के वायुमण्डल को सुविधा के लिए यह अनेक परतों मेंं विभाजित किया गया हैं।
1. क्षोभमण्डल (Tropospher ) ः- यह भाग पृथ्वी के षृष्ठ से 12 की ऊँच्चाई तक विस्तारित होता है।
2. समतापमण्डल (Stratosphere)- यह भाग पृथ्वी के पृष्ठ से 12 से 50 की ऊँच्चाई तक विस्तरित है। पृथ्वी के पृष्ठ से ऊपर लगभग 30 से 50 तक विस्तरित मण्डल ओजोन से संघनित हैँ।
3. मध्यमण्डल(Mesophere)  ः- यह भाग पृथ्वी के पृष्ठ से 50 से 80 की ऊँच्चाई तक विस्तारित है।
4. आयनमण्डल (Ionoshere) ः- यह पृथ्वी  के पृष्ठ से 80 से 400 की ऊँच्चाई तक विस्तारित है। आयन मण्डल में सूर्य से आने वाली पराबैगनी तथा  किरणे आययन करती हैं । अतः इस भाग मे अधिकांश मुक्त इलेक्ट्रान व धन आयन होते है। इसी कारण इस भाग को आयनमण्डल कहते है। पृथ्वी के पृष्ठ से लगभग 110 Km की ऊँच्चाई पर की सान्द्रता बहुुुत अधिक हो जाती है तथा उर्ध्वाधरतः कई किलो मीटर ऊपर की ओर विस्तारित होती हैं। इलेक्ट्रानों की यह परत केनेली हैवीसाइड परत अथवा  - परत कहलाती है। इसके पश्चात 250 Km की ऊँच्चाई तक इलेक्ट्रानो की साद्रता काफी घटती है । इसके उपरान्त इलेक्ट्रानो की एक अन्य परत आती है,जिसे एप्पिलिटन परतअथवा F- परत कहते हैं। आयनमण्डल का रेडियो तरंगो के संचरण मे विशेष महत्व है। वह अधिकतम आवृत्ति जो आयनमण्डल व्दारा परावर्तित हो सकते है , क्रान्तिक आवृत्ति कहलाती है।
                                      ∱c = 9 √Nmax
जहॉ Nmax आयनमण्डल की उस परत का अधिकतम इलेक्ट्रान घनत्व है।
 वायुमण्डल में विधुत चुम्बकीय तरंगो का संचरण ः-वायुमण्डल में विधुत चुम्बकीय तरंगो का संचरण निम्न तीन प्रकार से होते है-
(i)  भू- तरंगो का संचरण (Propagation of Ground Waves) ः- तरंग संचरण की इस प्रक्रिया में रेडियो तरंगें पृथ्वी के पृष्ठ के अनुदिश गमन करती हैं।सिग्नलो को उच्च दक्षता से विकिरित करने के लिए ऐटीना का साइज तरंगदैध्य > के (कम से कम >/4 ) होना चाहिए । इस विधि के व्दारा 1.5 MHz से कम आवृत्ति की रेडिया तरंगो का ही संचरण सम्भव है। भू - तरंग संचरण अल्प दूरियो के लिए ही सीमित है। इस संचरण मे तरंग पृथ्वी के जिस भाग से गुजरता है , उस पर धारा प्रेरित करती है तथा पृथ्वी व्दारा ऊर्जा के अवशोषण के कारण तरंग की तीव्रता क्षीण हो जाती है ।
(ⅱ) व्योम तरंगो का संचरण (Propagation of sky Waves ) ः - तरंग संचरण की इस प्रक्रिया मे तरंगे प्रेषित्र ऐण्टीना से ग्राही ऐण्टीना तक आयनमण्डल से परावर्तक के पश्चात पहुँचती हैं। आयनमण्डल के गुण समय के साथ बदलते रहते है अतः व्योम तरंगों व्दारा संचरण अविश्वसनीय हैं। सूर्य से आने वाले पराबैंगनी तथा अन्य उच्च ऊर्जा विकिरण पृथ्वी के वायुमण्डल मे उपस्थित वायु के अणओं कों आयनित कर देते है। चूँकि विभिन्न ऊँच्चाइयों पर वायुमण्डल का रासायनिक संघटन भिन्न -2 होते है , अतः पूरे आयनमण्डल में आयनीकरण एकसमान नहीं होता , बल्कि अनियमित रूप से परिवर्तित होता है तथा आयनो ं की विभिन्न परतें बन जाती हैं। आयनमण्डल का वह भाग जहॉ आयनो की तीव्रता अधिकतम  होती है तथा इसके दोनो ओर कम होती जाती है , एक परत कहलाती हैं। 
आवृत्ति की कुछ परासों ( 3MHz - 30MHz ) के लिए आयनमण्डल की परत एक परावर्तित का कार्य करती है। 30MHz से अधिक आवृत्ति की तरंगे आयनमण्डल को पार करके पलायन कर जाती हैं।
(ⅲ) आकाश तरंगो का संचरण (Propagation of Space Waves )ः- तरंग संचरण की इस प्रक्रिया में तरंगे प्रेषण ऐण्टीना से अभिग्राही ऐण्टीना तक दृष्टि रेखा पथ पर गमन करती हैँ। 40MHz से ऊँची आवृत्ति के लिए संचार मुख्यतः दृष्टि रेखा पथो तक ही सीमित रहता है। टी0 वी0 सिग्नलो ( 80 - 200 MHz) को न तो भू तरंगो व्दारा संचरित किया जा सकता है और न व्योम तरंगो व्दारा । इन सिग्नलो को केवल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब ग्रगही ऐण्टीना प्रेषक ऐण्टीना से चलने वाले सिग्नल के मार्ग मे पडे । टी0 वी0 का अधिक क्षेत्र विस्तार प्राप्त करने के लिये प्रसारण ऊँचे ऐण्टीना से करना चाहिये। 
ऐण्टीना व्दारा प्रेषित तरंगो व्दारा तय की गयी दूरी तथा क्षेत्र विस्तार :-


 टी0 वी0 ऐण्टीना की ऊँच्चाई h तथा वह दूरी d जहॉ तक सिग्नल प्रेषित किये जा सकते है, सम्बन्ध ज्ञात करने के लिये , माना  ST टी0 वी0 का h ऊँचाई का प्रेषित्र ऐण्टीना है। माना पृथ्वी का केन्द्र O तथा त्रिज्या R है। पृथ्वी की वक्रता के कारण पृथ्वी की सतह के बिन्दुओ P तथा  Q के परे सिग्नल प्राप्त नहूूीं किये जा सकते यहॉ PT तथा QP क्रमशः P तथा Q  पर स्पर्श रेखाए है।माना d (= SP अथवा  SQ ) ऐण्टीना के आधार से पृथ्वी की दूरी है , जहॉ तक सिग्नल प्राप्त होते हैं।
                               समकोण त्रिभुज OPT मे - 
                (OT)2 =  (OP)2 + (TP)2
          जहॉ   OT = R +h , OP = R    TP = SP =d    (क्योकि h <<R)
 इस प्रकार ( R+h)2 = R2 + d2
               R2 + 2Rh = d2
     चूँकि   h <<R, अतः हम h2 को 2Rh के सापेक्ष नगण्य मान सकते हैँ । इस प्रकार 
                                             2Rh = d2
                                                             d = √2Rh
   टी0 वी0 प्रसारण में क्षेत्र विस्तार 
                                              A = πd2
                                                               A = 2πRh
अधिक दृष्टि रेखा दूरी  ः- प्रेषी ऐण्टीना से क्षितिज की दूरी  = dT = √2RhT
                                       प्रेषी ऐण्टीना से क्षितिज की दूरी  =  dT =   √2RhR
अधिक दृष्टि रेखा दूरी , 
                 dM  =  dT  + dT
              dM  = √2RhT  + √2RhR
  माँडुलन तथा इसकी आवश्यकता – किसी भी संचार व्यवस्था में सन्देश सिग्नलो को , जिसका आवृत्ति परास (20Hz से 20KHz) होता है  किसी दूरस्था को अथवा लम्बे परास की दूरी को पर सीधे ही सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता । इसके निम्नलिखित कठिनाइयाँ उत्पन्न होती है-
 (i)  ऐण्टीना का आकार  - किसी सिग्नल के प्रेषण के लिए हमे एक ऐण्टीना अथवा एरियल की आवश्यकता होती है । 20KHz आवृत्ति की विधुत चुम्बकीय तरंग के लिए तरंगदैध्य
λ = c/λ   3×108m/sec/20×103Hz = 15×103m = 15k

ऐण्टीना का न्यूनतम आकार λ/4 होना चाहिए , जहॉ λ   ऐण्टीना से प्रेषित वाहक तरंग की तरंगदैध्य  है। इस प्रकार ऐण्टीना की लम्बाई वाहक तरंगो की आवृत्ति के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

अतः श्रव्य आवृत्तियों के सिग्नल के सीधे प्रेषण के लिए ऐण्टीना की लम्बाई आकार 15Km को कोटि का होना चाहिए । ऐसा लम्बा ऐण्टीना अव्यवहारिक है। यदि प्रेषण आवृत्ति उच्च 3MHz की कोटि की हो ,तो 3Mhz की तरंग के लिए

    λ = c/λ =3×108m/sec / 3×106Hz = 100m 

अतः ऐण्टीना की लम्बाई  λ/4 = 100/ 4 = 25   होनी चाहिए ।

अतः सन्देश सिग्नल से प्रेषण के लिए उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगे होनी आवश्यक हैं । इसके लिये निम्न आवृत्ति के बेस बैण्ड मे निहित सूचना को प्रेषण से पहले रेडियो आवृत्ति की तरंगे पर अध्यारोपित करना आवश्यक है।

(ⅱ) कम शक्ति का प्रभावी विकिरण – विकिरण के सिध्दान्त के अनुसार l लम्बाई के रेखीय ऐण्टीना व्दारा विकिरण शक्ति , तरगदैध्य  λ के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

   अतः निश्चित लम्बाई l के ऐण्टीना के लिए  P = 1/ λ2

 इससे स्पष्ठ है कि एक निश्चित लम्बाई के ऐण्टीना  व्दारा छोटी तरंगदैध्य ( अथवा उच्च आवृत्ति ) के सिग्नल व्दारा अधिक शक्ति का विकिरण होगा जबकि दीर्घ तरंगदैध्य के बेसबैण्ड सिग्नल व्दारा शक्ति का प्रभावी विकिरण कम होगा । उपयुक्त प्रेषण हेतु उच्च शक्ति का विकिरण आवश्यक होता है, यही कारण है कि वाहक तरंग उच्च आवृत्ति की होनी चाहिए ।

(ⅲ) सिग्नल का मिश्रित होना – यदि रेडियो टी0 वी0 प्रसारण स्टेशन एक साथ कई प्रेषित बेस – बैण्ड विधुत सिग्नल को एक साथ प्रेषित कर रहे है। तो सभी सिग्नल मिश्रित हो जायेगें तथा उनमें भेद करना असम्भव हो जायेगा । इस कठिनाई को दूर करने के लिए सिग्नल्स को उच्च आवृत्ति पर प्रेषित करते है तथा प्रस्येक रेडियो या टी0 बी0 प्रसारण स्टेशन को एक बैण्ड आवंटित करते हैं । प्रत्येक प्रसारण स्टेशन को आवंटित बैण्ड चौडाई 10KHz अथवा वाहक तरंग के दोनो ओर ±5 होती है।

माँडुलन(Modulation) श्रव्य़ आवृत्ति सूचना अर्थात निम्न आवृत्ति की विधुत चुम्बकीय तरंग (20Hz – 20KHz ) को प्रेषण से पहले किसी उच्च आवृत्ति की विधुत चुम्बकीय तरंग पर जिसे वाहक () कहते हैं, अध्यारोपित करना होता है । इस अध्यारोपित करने की क्रिया को माँडुलन कहते हैं। परिणामी तरंग को माँडुलित तरंग कहते हैं ।

माँडुलन के प्रकार  - माँडुलन  तीन प्रकार का होता हैं –

1.       आयाम माँडुलन (Amplitude Modulation, A.M)

2.       आवृत्ति माँडुलन(Frequency Modulation, F.M)

3.       कला माँडुलन (Phase Modulation, P.M)

आयाम माँडुलन  ­ - आयाम माँडुलन  मे वाहक तरंग का आयाम माँडुलन  तरंग के तात्कालिक मान के अनुसार बदलता है।

माना वाहक तरंग का समी0

ec = E sin Wct    ......................................i

जिसमे  E ,वाहक तरंग का शिखर मान (आयाम) है

e E sin Wt  ...............................ⅱ

जिसमे  E ,वाहक तरंग का शिखर मान (आयाम) है

आयाम माँडुलन मे वाहक तरंग के आयाम मे माँडुलन तरंग के अनुक्रमानुपाती वोल्टेज e है , तो आयाम माँडुलन तरंग का समी0 होगा –

   e = ( Ec + em ) sin Wc t .............................ⅲ

यहॉ (Ec + em) माँडुलन तरंग का आवरण है।


माना माँडुलन तरंग की  आवृत्ति m = Wm / 2Π    है तथा वाहक तरंग की आवृत्तिc = Wc/ 2Π   है अतः माँडुलन तरंग का समी0 = ⟦ e =( Ec + Em sin Wm t ) sin Wc t   

e = (1+ Em / Ec sin Wc t) sin Wc t

e=Ec (1+msin Wc t ) sin Wc t

यहॉ ma = Em / Ec   को माँडुलन गुणांक अथवा माँडुलन सूचकांक  अथवा माँडुलन की गहराई कहते हैं । आयाम माँडुलन तरंग मे तीन घटक तरंगे हैं-

     1.       आयाम तथा आवृत्ति ∱c = Wc/2π  की वाहक तरंग

     2.       आयाम तथा आवृत्ति Wc-Wm/ = ∱c -∱m की तरंग

     3.       आयाम  तथा आवृत्ति Wc-Wm/2π = ∱c -∱m  की तरंग

आयाम माँडुलन तरंगे मे मूल वाहक तरंग की आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है तथा दो नई आवृत्ति (∱c -∱m ) तथा (∱c +∱m ) उत्पन्न हो जाती हैं । जिनको पार्श्व बैण्ड आवृत्तियाँ कहते हैं।

Note:- आयाम माँडुलन तरंग की बैण्ड चौडाई

= (∱c +∱m) - (∱c -∱m)

= 2∱m

आयाम माँडुलक तरंग के अधिकतम व न्यूनतम मान

Emax  = Ec + Em

Emax  = Ec - Em

इन समी0 को हल करने पर

Ec = Emax + Emax / 2                           तथा Em = Emax - Emax / 2

माँडुलन सूचकांक   = ( ma = Em/Ec = Emax - Emin / Emax + Emin )

आयाम माँडुलन तरंग का उत्पादन _:­­­­­- 


आयाम माँडुलक तरंग की उत्पत्ति के लिए प्रयोग किया जाने वाला वाहक तरंगो के लिए उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धत का काम करता है। वाहक तरंग को संधारित केवल ac घटको को हो जाने देता है। माँडुलक सिग्नल E = Em sin w t को आधार पर इस प्रकार लगाया जाता है कि आधार वायस वोल्टेज के साथ माँडुलक सिग्नल भी निवेशित होता है, इससे आधार वोल्टता नियम नहीं रहती बल्कि माँडुलक सिग्नल के तात्कालित मान के अनुसार परिवर्तित होती है। इस प्रकार आधार उत्सर्जक के बीच निवेशी वोल्टता , माँडुलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित होती है। जिसके कारण निगंत वोल्टता भी उसी के अनुसार प्रवर्धित होती है । अतः निर्गत मे आयाम माँडुलिक तरंग प्राप्त होती है ।

आयाम माँडुलित तरंग का संसूचक अर्थात विमाडुलन :– माडुलन तरंग से श्रव्य. सिग्नल को पुनः प्राप्त करने की क्रिया विंमाँडुलन कहते हैं।आयाम माडुलित तरंग के विमाडुलन मे दो क्रियाएँ होती हैं-

1.        माडुलित तरंग का दिष्टकरण करना

2.         माडुलित तरंग के रेडियो आव़ृत्ति घटक का विलोपन करना

आयाम माँडुलित तरंग के लिए डायोड संसूचकः-



p –n संधि डायोड संसूचक  विमाँडुलन के लिये सबसे अधिक प्रचलित है। परिपथ मे निवेशी परिपथ स्वप्रेरकत्व L तथा  परिवर्ती संधारित का समान्त संयोजन है। इसको स्वसरित परिपथ कहते हैं । ग्राही ऐण्टीना पर पडने वाले बहुत से विभिन्न रेडियों सिग्नलो मे से बाँधित माँडुलित रेडियो आवृत्ति सिग्नल को C से समायोजित करके अनुवाद के आधार पर चयनित कर लिया जाता हैं।

p-n संधि डायोड इस सिग्नल को दिष्टकृल कर देता है। अतः डायोड का निर्गत रेडियो आवृत्ति की धारा स्पन्दो के धनात्मक आधे वक्रों की चेन है । इनके शिखर श्रव्य सिग्नलो के अनुसार परिवर्तित होते हैं । श्रव्य सिग्नलो की पुनः प्राप्ति के लिए इन्हें उच्च प्रतिरोध के लोड प्रतिरोध R ( लगभग 1 मेगा ओम) , तथा उपमार्गी संधरित C के समान्तर सयोजन पर आरोपित किया जाता है । C की धारिता इतनी होती है कि इसका प्ररिघात ( X = ½πCB   )  वाहक रेडियो तरंगो की आवृत्ति ( f) पर RL की तुलना में कम हो तथा निम्न आवृत्ति की श्रव्य तरंगो के लिए प्रतिघात उच्च हो जिससे वाहक रेडियो तरंगो के अवयव उपगार्मी संधारित C से निकलकर पृथ्वी में चले जाये तथा निम्न आवृत्ति की श्रव्य तरंगो के अवयव जोड प्रतिरोध R के सिरो पर प्राप्त हो । यह हेडफोन मे धारा भेजता है जिससे मूल श्रव्य सिग्नल सुनाई पडता है ।

संसूचन के लिए सन्तोषजनक प्रतिबन्धः- फिल्टर परिपथ मे जुडे संधारित की धारिता इतनी होनी चाहिए कि रेडियो आवृत्ति   के लिए इसका प्रतिघात (Xc = 1/2πfc CB ) प्रतिरोध   की तुलना मे बहुत कम हो अर्थात   

Xc << RL             अथवा                   1/2πfc CB << R  

जबकि श्रव्य आवृत्ति  के लिए इसका प्रतिघात , प्रतिरोध  की मे बहुत अधिक हो अर्थात

 

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